इसी अंदाज़ से
शुक्रगुज़ार हूँ मैं तकदीर का मुझे इतने ग़म जो दिए हैं
न जानें किसके हिस्से के ग़म खुदा नें कम किए हैं
हमको तो आदत थी यारो हंसने की सहने की
फिर भी लगता पिछले जन्म में कुछ तो पाप किए हैं
दर्द भी सहने में हमको कुछ ख़ास मज़ा आता है
हम तो ज़िंदगी भर इसी अंदाज़ से जिए हैं
दीपक 'कुल्लुवी' को यह दुनियाँ याद रखे भूल जाए
दर्द-ओ-ग़म सहने के सिवा उसने क्या गुनह किए हैं
दीपक 'कुल्लुवी'
15 जुलाई 2012 .
09350078399
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