पूजनीय गुरु डॉ. श्री विश्वमित्र जी महाराज को अंतिम बिदाई I -- रिपोर्ट : दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
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अत्यंत दुखित मन से सूचित करना पड़ रहा है की आज सुबह हरिद्वार में श्री राम शरणम प्रमुख व हमारे परम पूजनीय गुरु डॉ. श्री विश्वमित्र जी महाराज हमें इस भरी दुनियाँ में अकेले छोड़कर श्री राम की शरण में परमधाम को चले गए I
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मुझे ग़ज़लों,शायरी की दुनियाँ से भजनों की दुनियाँ में लाने वाले गुरु जी ही थे 1995 को मैंने गुरु जी से चंडीगढ़ में दीक्षा ली थी जब मैं रोपड़ में नौकरी करता था उनकी प्रेरणा से ही उसी दिन मैंने अपनें जीवन का पहला भजन लिखा था 'राम श्री राम श्री राम भजो,हरी सुमिरम सुबह शाम करो'......उसके बाद भजनों का सिलसिला ऐसा चला की आज तक कायम है हजारों भजन लिख चुका मेरी धर्मपत्नी 'कुमुद' भी गुरु जी से ही दीक्षित है और मेरे भजन और अमृतबाणी गाती है I अभी कुछ दिन पहले ही वह गुरु जी से मनाली स्थित श्री राम शरणम आश्रम में मिलकर आयी लेकिन मेरी बदनसीबी रही की गुरु जी के अंतिम दर्शन नहीं कर पाया गुरु जी ने देह त्याग भी अपने प्रिय भक्ति स्थल हरिद्वार में ही किया
गुरु चरणन में शीश झुकाऊँ
द्वार गुरु चाहे आ न पाऊँ .....
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गुरु जी का जन्म-१५ मार्च सन् १९४० में हुआ था परम पूजनीय श्री प्रेम जी महाराज के अन्तरंग शिष्य डॉ. श्री विश्वमित्र जी महाराज ने आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसिज, नई दिल्ली में 22 वर्षों तक गौरव शाली सेवा की. आप एशिया के अकेले ओक्यूलर माइक्रोबायोलोजिस्ट के रूप में विख्यात हुए, प्रभु प्रेम का आकर्षण आपको संसार से बाँध नहीं पाया I
आपकी वाणी में विलक्षण तेज, ओज एवं सत्य का प्रभाव था I आपके प्रवचन एवं भजन कीर्तन-गायन से सभी श्रोतागण मुग्ध हों जाते थे I आपके तप का प्रभाव आपके तेजोमय मुख-मंडल से स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता था
आप अपने आवागमन एवं भोजन का पूरा व्यय स्वयं वहन किया करते थे तथा किसी से कोई भेंट स्वीकार नहीं करते थे I
आपने राम नाम को जीवन का एक मात्र उद्देश्य बनाते हुए पूज्य श्री स्वामीजी महाराज द्वारा स्थापित आदर्श परम्पराओं का दृढ़ता पूर्वक निर्वहन करते हुए अपने तेजोमय प्रभा मंडल से समूचे भारत एवं विश्व को प्रकाशित करते रहे हैं I आप दर्शन मात्र से ही सबको आनंदित एवं प्रफुल्लित कर देते थे I
ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व के धनी हैं हमारे गुरु जी हमें इस भरी दुनियाँ में अकेले छोड़कर श्री राम की शरण में परमधाम को चले गए I
इस लेख में कुछ अंश मैंने श्री राम शरणम् की वैब साईट से लिए हैं I
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