
पर्यावरण
यूँ तो पर्यावरण की बातें हम सब करते हैं
लेकिन रात में घर का कचरा गली में भरते हैं
दोष देते सरकार को हम,ऐसा क्यों होता है
शायद हमको जिम्मेदारी का एहसास नहीं होता है
जब तक हम न सुधरेंगे,कोई न सुधरेगा
इल्ज़ाम का क्या है लगाते रहो,प्रदूषण बढ़ता रहेगा
नारे लगाओ न बातें करो,वृक्षारोपण कुछ तो करो
आवो-हवा कुछ तो बदलो यारो, धरा पर कुछ उपकार करो
वर्ना पछताओगे और हाथ मलते रह जाओगे
भरी जवानी में यारो बूढ़े से नज़र आओगे
खिलबाड़ करोगे प्रकृति से तो वोह क्यों बख्शेगी
बदला लेगी सबसे वोह तवाह करके दम लेगी
प्राकृतिक आपदाएँ यूँ ही नहीं आती
सूखा,गर्मीं सर्दी,बाढ़ यूँ ही नहीं खाती
हिमशिखरों की वर्फ पिघल रही,गर्मीं चारों और बढ़ रही
सारी दुनिया पर्यावरण की बस चौतरफा मार झेल रही
जंगल कट गए सूखी नदियाँ खेत खलिहान वीरान
बन जाएगी पृथ्वी सारी जीते जी शमशान
जीते जी शमशान ------------
दीपक 'कुल्लुवी'
09350078399
हम पोस्टों को आंकते नहीं , बांटते भर हैं , सो आज भी बांटी हैं कुछ पोस्टें , एक आपकी भी है , लिंक पर चटका लगा दें आप पहुंच जाएंगे , आज की बुलेटिन पोस्ट पर
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