
निजी स्वार्थ साधने के मलिन इरादे से, हमारे आसपास, रातदिन घूमनेवाले,कुछ मक्कार इन्सान, हमारी आंख पर, अलग-अलग नाम के संबंध की पट्टी बांधकर, हमारी नज़रबंदी करके, हमारे साथ, `अंधा भैंसा` या `आँधरो पाटो` की भाँति, धोखाधड़ी का खेल खेलते रहते हैं..!!
`अंधा भैंसा` खेल में भी,दाँव देनेवाले दोस्त की आँख पर पट्टी बँधी होने की वजह से, उसके साथ खेल खेलने वाले दोस्तों को, सिर्फ अनुमान के आधार पर ही पकड़ कर, खुद विजयी होना पड़ता है..!!
यहाँ किलिक कर आप भी इस विमर्श में हिस्सा ले सकते हैं :
जीवन के कई रंगों का समावेश और उनके बीच जीवन की दुरूहता को एक कथानक में बांध देने की क्षमता रखने वाली कहानी सुना रहे हैं विजय कुमार
"ग्रामोफोन का रिकॉर्ड बंद हो गया था, चिडियों की आवाजे अब नहीं आ रही थी . सिर्फ अनिमा के सुबकने की आवाज , रजनीगंधा के फूलो की खुशबु के साथ कमरे में तैर रही थी . और तैर रहा था दोनों का प्रेम !"
आज चौपाल में चौबे जी नंगे बदन लुंगी लपेटे बैठे हैं। प्लेट में चाय उड़ेल कर सुड़प रहे हैं । तोंद कसाब मामले की तरह आगे निकली हुई है। सफाचट सर, मूंछ में चाय की बूँदें अटकी हुई मनमोहनी मुस्कान बिखेरते हुए मुँह ही मुँह बुदबुदा रहे हैं कि-"जब आम के आम न आये, गुठली के दाम न आये अऊर कवनो रोजगार मा लाभ ना आये, तो बन जईयो निर्मम बाबा । हमार मतलब है निर्मल बाबा।
चौबे जी की चौपाल में पढ़ें :
मेरे कन्धे पर श्मसान के रास्ते झूल रहे है और सभी लाशेँ कोल्हू के बैल सा उन रास्तोँ मेँ घुमते चले जा रहे है......
पढ़िये मोती लाल की कविता वटवृक्ष पर :
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