आज हर शख्स ज़र्रा ज़र्रा खुशी को तढपता है
हम तो खुशी बाँटते हैं 'रमेश'
फ़िर भी हर कोई हमसे क्योँ कटता है
आज हर शख्स ज़र्रा ज़र्रा खुशी को तढपता है !!
दिन को रात कहें और कहें रात को दिन
ऐसी तो हमारी फितरत ही नहीं
हकीकत को हकीकत न कहें तो और क्या कहें
हकीकत से फ़िर क्योँ कोई डरता है !!
हमने तो खाक को भी सर पे उठाया यारो
हर इन्सा को अपना सोच के गले लगाया यारो
फ़िर हमसे क्योँ कोई शिकवा शिकायत करता है
फ़िर भी कोई हमसे क्योँ कटता है !!
हमने दिल खोल के जज़्बातों को निभाया यारो
सीने में कोई राज़ न छिपाया यारो
फ़िर भी कोई हमसे क्योँ डरता है
आज हर शख्स ज़र्रा ज़र्रा खुशी को तढपता है !!
हमने ज़िंदगी को खुदा की कुदरत माना
कुदरत की हर शय को इबादत माना
हम इबादतखाने में इबादत न कर सके न सही
फ़िर भी क्योँ कोई हमपे काफ़िर होने का शक करता है !!
फ़िर भी हम ज़िंदगी से बेहद खुश हैं यारो
ये सोच के भी हमसे क्योँ कोई जलता है
हम तो खुशी बाँटते है 'रमेश'
आज हर शख्स ज़र्रा ज़र्रा खुशी को तढपता है !!
BAHUT KHOOB
जवाब देंहटाएंDEEPAK KULLUVI