
खाक़
मेरी ज़िन्दगी की तरह
मेरे बनाये चित्र भी
चीथड़े चीथड़े हो गये
वोह तो कुछ न कह पाए
बस खामोश हो गए
कसक तो दिल में रह ही गई
अंतरात्मा मेरी मायूस हो गयी
दर्द दोनों नें ही सहा
किसी से लेकिन कुछ न कहा
वोह कवाड़ में बिक गयी
अर्थी मेरी शमशान चली गई
दास्ताँ यहीं रुक गयी
यहीं ख़त्म हो गयी
'दीपक' यूं ही जलते रहे
जलने वाले जलाते रहे
दीपक शर्मा कुल्लुवी
२६/९/११
मार्मिक...
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