कहाँ जाएँगे
कश्ती मंझधार में है बचकर कहाँ जाएंगे
अब तो लगता है ऐ-दिल डूब जाएँगे
कोई आएगा बचाने ऐसा अब दौर कहाँ
अब तो चाहकर भी साहिल पे ना आ पाएँगे
हमनें सोचा था संवर जाएगी हस्ती अपनी
उनके दिल में ही बसा लेंगे बस्ती अपनी
इस भंवर में पहुँचाया हमें अपनों ने ही
अब इस तूफां से क्या खाक बच पाएँगे
अपनी बेबसी पे ऐ-कुल्लुवी क्या बहाएँ आंसू
वक़्त जो बच गया अब उसको कैसे काटूं
चंद लम्हों में यह 'दीपक' भी बुझ जाएगा
हम भी घुट घुट कर ऐ-दिल मर जाएंगे
दीपक शर्मा कुल्लुवी'
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कहाँ जाएँगे
Posted by दीपक कुल्लुवी की कलम से
Posted on बुधवार, अगस्त 03, 2011
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