सच्चा मित्र बड़े पैमाने पर शिक्षकों की भर्ती में राधेश्याम का भी नम्बर आ गया। वह बहुत खुश था और खुशी से फूला नहीं समा रहा था। वह अपने एक शिक्षक मित्र के पास गया। और बोला "अब मैं भी शिक्षक बन चुका हूँ। जल्द ही ज्वाइन करने वाला हूँ। लेकिन एक बात की चिन्ता सता
रही है।"
मित्र ने उत्सूकता से पूछा, "अब क्या परेशानी है ?"
राधेश्याम ने गम्भीर होते हुए कहा, "समझ में नहीं आ रहा कि बच्चों को क्या पढ़ाऊंगा। मैं यहां तक कैसे पहुंचा हूँ यह तो मैं ही
जानता हूँ।"
"घबरा मत परमानेन्ट होने के लिए जैसे-तैसे दो साल बिता देना फिर खुद-ब-खुद सीख जायेगा। वैसे भी यहां पढ़ाता कौन है ? लगभग पूरा साल छुट्टियों में ही बीत जाता है।" मित्र ने धीरज बंधाते हुए कहा। लेकिन तभी मानों किसी ने उसके कान में कुछ कहा। यह और कोई नहीं, अपितु उसकी सबसे अच्छी मित्र आत्मा की आवाज़ थी। राधेश्याम दृढ़ निश्चय कर चुका था कि उसे एक योग्य शिक्षक बनकर दिखाना है न कि दो साल बिताने की सलाह देने वाले मित्र जैसा शिक्षक।
कन्या नहीं तो देश नहीं रैली में सभी महिलाऐं जोर-शोर से कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए नारे लगा रही है और हर महिला के हाथ में एक बैनर है जिस पर लिखा है "कन्या नहीं तो देश नहीं!"
मैं यह सब देखकर हैरान हो गया और सोचने लगा कि क्या रैलियों से ऐसे दुष्कर्म रोके जा सकते हैं ? लेकिन अगले ही पल मेरे मन में विचार आया कि अगर देश की महिलाऐं जागृत होकर ऐसा करें तो शायद.......क्योंकि आखिर जन्म तो महिला ही देती है।
अचानक मेरी नज़र लक्ष्मी काकी पर पड़ी जो मेरे पड़ोस में रहती है। मुझे देखकर वह हाथ में उठाए डंडे को संभालते हुए मेरे पास आई और बोली, ''अरे बेटा! बहू अस्पताल में भर्त्ती है। चौथी बेटी हुई है। वहीं गई थी। मूड खराब था सो अस्पताल के बाहर पेड़ के नीचे खड़ी टैक्सी का इंतज़ार कर रही थी कि ये रैली वाले आ गए और कहा कि सौ रुपया मिलेगा, यह डंडा उठाकर कुछ दूर चलो।
मैं अवाक था।
बंद मुट्ठी श्रवण बहुत ईमानदारी से जिया और मरते-मरते भी ईमानादारी दिखा गया। अंत समय में भी श्रवण ने दवाईयाँ लेने से मना कर दिया। कहने लगा "इलाज में कमीशन, दवाईयों में कमीशन, लाश लेनी है तो कमीशन। बस कुछ भी देना है तो बंद मुट्ठी दे दीजिए। आखिर, कब तक लोग भ्रष्टाचार में डूबे रहेंगे? कब तक चन्द रुपयों के लिए गरीबों की जान से खेलते रहेंगे?? "
श्रवण की घरवाली अंत तक कहती रही "एक आपके ईमानदारी दिखाने से कौनसा, किसी का भला होने वाला है। लोग तो ऐसे ही मरते हैं और जीते हैं। सब भूल जाएंगे कल।"
श्रवण की आंखों के आगे बार-बार उसकी तड़पती बेटी का चेहरा सामने आ रहा था जो सिर्फ गरीब होने के कारण पूरी रात अस्पताल की गैलरी मंे पड़ी रही। डॉक्टरों से लाख गुहार करने के बाद भी उसकी बेटी को न तो बैड मिला और न ही इलाज।
श्रवण ने अंत समय में घरवाली से कहा "देखो! तुम हमारे लाडले को डॉक्टर बनाना और इसे समझा देना कि हमेशा गरीबों की सेवा करें।"
"यदि लाडले ने डॉक्टर बनने के बाद किसी से रिश्वत मांगी तो......." घरवाली एक सांस में बोल गयी।
इसका उत्तर देने से पहले ही श्रवण के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।
हा हा हा यही हालत है लोग मास्टर बनते ही इसीलिए की उन्हें पढ़ना नही पड़ेगा
उत्तर देंहटाएं