योग्यता ''सर मैं वरिष्ठ पत्रकार श्री जे.के. सिंह का भाई हूँ। उन्होंने मुझेआपके पास कलाकार के रिक्त पद के सिलसिले में भेजा है।सर मैं कला के सभी क्षेत्रो में दख़ल रखता हूँ। सर ये कुछ बड़ी साहित्यिकपत्रिकाओं के अंक हैं, जिनमें मेरी रचनाएँ छपी हैं। सर ये फोटो-ग्राफ़ी काडिप्लोमा और उससे सम्बन्धित पुरस्कार और सर ये रही मेरी संगीत विषारद कीडिग्री और सर ये मेरी मूर्तिकला के नमूने और सर ये...'''देखो मिस्टर तुम्हारे इस ताम-झाम से हमें कोई मतलब नहीं है। तुम्हारीसबसे बड़ी योग्यता यह हैं कि तुम उस वरिष्ठ पत्रकार जे.के. सिह के भाई हो,जिसके पास हमारी कई सारी पोल हैं। तुम अपना आवेदन दो और निकल लो।'
सेवकपुर उसे देष में राजषाही की परम्परा थी, और राजा बड़ा ही अलोकप्रिय हो चला था। आस-पास के दूसरे देषों में लोकतंत्र की बयार बह रही थी। उस देश के लोग भीअपने यहां लोकतंत्र लागू करवाना चाह रहे थे, और इस हेतु क्रान्ति के लियेमाहौल बनाने में जुटे हुए थे। परेषान राजा ने राजगुरू से सलाह ली।राजगुरू की सलाह पर राजा ने खुद को प्रजा का सेवक घोषित कर दिया।राजदरबारी अब षासकीय सेवक हो गये। कुछ समाजसेवक तो पहले ही थे । अब एन.जी.ओ. भी समाज की सेवा की दुकान लगाने लगे । और तो और, प्रजा का खून चूसने वाले व्यापारी भी खुद को सेवक कहने लगे। आम जनता में भी कई तरह के सेवक पैदा हो गये। राज्य में जो जितना अधिक सम्पन्न था वो उतना ही बड़ा सेवक माना जाने लगा। इस तरह उस राज्य मेंलोकतंत्रात्मक राजषाही क़ायम हो गयी, और जन-भावना के मद्देनज़र उस देष कानाम सेवकपुर रख दिया गया।
आत्मपीड़न ट्रेन की जनरल बोग़ी में काफ़ी भीड़ थी....। वह अपनी पत्नी और पाँच वर्ष के बच्चे के साथ किसी तरह अन्दर पहुँचा। अन्दर एक सीट पर एक व्यक्ति पसराहुआ था। उसने बड़ी ही नम्रता से अपनी पत्नी और बच्चे का हवाला देते हुए उसव्यक्ति से थोड़ी सी जगह देने का अनुरोध किया । इस पर वह बिगड़ने लगा। ठीकहै भैय्या तुम्हीं लेटे रहो कहते हुए उसने अपने बच्चे को वहीं उस व्यक्तिके पैताने खड़ा किया और पत्नी-पत्नी दोनो दबकर एक ओर खड़े हो गये।थोड़ी देर बाद उसकी पत्नी धीरे-धीरे बड़बड़ाते हुए अपने पति को लताड़ने लगीइस पर उसने कहा शांत तो रहो, यह लेटा हुआ व्यक्ति खुद हमें जगह देगा।कुछ देर बाद उस लेटे हुए व्यक्ति के पैर बच्चे से टकराने लगे। पहले तोउसने अपने पैरों को समेटा, और फिर धीरे से बच्चे को बैठ जाने को कहा।बच्चा सीट पर बैठ गया। कुछ और समय बीतने पर वह लेटा हुआ व्यक्ति परेशानहोकर बेचैनी से करवटें बदलने लगा। आख़िर में उ ससे रहा नहीं गया और वहभाईसाहब आप लोग यहाँ आराम से बैठ जाएं, कहते हुए वह अपनी सीट पर उठ बैठा।
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Alok kumar satpute की लघुकथाएं
Posted by Himdhara
Posted on रविवार, अप्रैल 24, 2011
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तीनों लघुकथाएँ अपनी छाप छोड़ने वाली हैं | योग्यता ,सेवकपुर-अव्यवस्था पर एक गहरा कटाक्ष है| अन्य --मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रशंसनीय है |
जवाब देंहटाएंसुधा भार्गव