भूख मनूर जैसा काला, तमतमाया चेहरा,धूँयाँ सी मटमैली आँखें,पीडे हुये गन्ने जैसा सूखा शरीर ,साथ मे पतले से बीमार बच्चे का हाथ पकडे वो सरकारी अस्पताल मे डाक्टर के कमरे के आगे लाईन मे खडा अपनी बारी की इन्तज़ार कर रहा था। मैं सामने खडी बडे देर से उसकी बेचैनी देख रही थी। मुझे लगा उसे जरूर कोई बडी तकलीफ है। वैसे तो हर मरीज बेचैनी और तकलीफ मे होता है मगर मुझे लगा कि उसके अन्दर जैसे कुछ सुलग रहा है, क्यों कि वो अपने एक हाथ की बन्द मुट्ठी को बार बार दबा रहा था-- और बच्चा जब भी उसकी उस मुट्ठी को छूता वो उसे और जोर से बन्द कर लेता।मुझ से रहा न गया,सोचा पता नही बेचारे को कितनी तकलीफ हो,शायद मैं उसकी कुछ सहायता कर सकूँ।---
*भाई साहिब क्या बात है?आप बहुत परेशान लग रहे हैं?* मैने उससे पूछा।
* बहन जी कोई बात नही,बच्चा बिमार है, डाक्टर को दिखाना है। * वो कुछ संभलते हुये बोला।
फिर आप बच्चे को क्यों झकझोर रहे है, मुट्ठियाँ भीँच कर बच्चे पर गुस्सा क्यों कर रहे हैं?*
*क्या बताऊँ बहन जी, मेरा बच्चा कई दिन से बीमार है। और भरपेट रोटी न दे सकने से भूख से भी बेहाल है।कुछ खाने के लिये मचल रहा है।इस बन्द मुट्ठी मे पकडे पैसों को जो कि मेरा दो दिन की कमाई है इसकी भूख से बचा रहा हूँ।इसे समझा भी रहा हूँ कि बेटा तेरे पेट की भूख से बडी पैसे की भूख है। इन पैसों से डाक्टर की पैसे की भूख मिटाऊँगा तब तेरा इलाज होगा। भला गरीब का क्या दो दिन न भी खाने को मिले जी लेगा। मुझे डर है कि मेरी बारी आने से पहले मुझे इसकी भूख तडपा न जाये और डाक्टर की भूख पर डाका न डाल ले।* उसकी बात सुन कर मैं सोच रही हूँ कि जब डाक्टर को सरकार से तनख्वाह भी मिलती है फिर भी उसे पैसे की भूख है , इस गरीब की दो दिन की कमाई केवल डाक्टर की फीस चुकाने मे लग जायेगी तो ये परिवार को खिलायेगा क्या???????????
दो चेहरे
"पापा आज आप स्टेज पर हीर राँझा गाते हुये रो क्यों पडे थे?"
"समझाईये न पापा"
'तुम नहीं समझोगी"
"समझाईये न पापा"
रनबीर की सात साल की बेटी अचानक अपनी नौकरानी के बेटे गोलू के साथ खेलती हुयी पापा से आ कर पूछने लगी।
'नहीं पापा मुझे बताओ ना" वैसे ये हीर राँझा क्या होते हैं?"
रनबीर ने बेटी की तरफ देखा और उसे बताने लगा
'बेटी हीर राँझा दो प्रेमी थे दोनो एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे मगर दोनो की शादी नहीं हुयी और और दोनो एक दूसरे के लिये तडपते रहे" ये गीत हीर राँझा की प्रेम कथा है, उसका दर्द देख कर किसी के भी आँसू निकल जाते हैं। बहुत दर्दनाक प्रेम कहानी है।' रनबीर सिंह अपने ही ख्याल मे डूबा हुया बेटी को बता रहा था।
"पापा उनके माँ बाप कितने बुरे थे?"
'हाँ बेटी बहुत बुरे"। रनबीर ने बेध्यानी मे जवाब दिया
" पापा1 मेरे पापा तो बहुत अच्छे हैं जब मैं गोलू से शादी करूँगी तो आप हमे कुछ नहीं कहेंगे ना?" बेटी ने भोलेपन से कहा
'चटाक' तभी उसके गाल पर एक ज़ोर से चाँटा पडा और बेटी अवाक पिता की तरफ देख रही थी।
उसे क्या पता था कि इन्सान के दो चेहरे होते हैं एक घर मे एक बाहर।
दर्पण शुची बहुत दिनो बाद आयी थी। कितने दिन से मन था उसके पास बैठूँगी अपने दिल की बात करूँगी\ मगर आजकल वो बहुत परेशान है, अपनी मकान मालकिन से। शहरों मे पानी की कितनी किल्लत रहती है। इसके चलते रोज़ उसका मकान मालक िन से झगडा हो जाता है। अब और कहीं अच्छा घर मिल नही रहा। वैसे भी रोज़ रोज़ घर बदलना कौन सा आसान है। एक बार मैने कहा भी था कि थोडा खुद को उसकी जगह रख कर देखो, शायद वो भी सही हो! उसने बताया कि मकान माल्किन का हुक्म है कि सुबह जब पानी आता है तभी उठ कर अपना काम निपटा लिया करे। बस एक घन्ट ही वो ऊपर पानी देंगे बाद मे टंकी भरने के लिये ही रखेंगे। टंकी के पानी से काम करना उन्हें बिलकुल अच्छा नही लगता कई बार टंकी भरी न हो तो पानी खत्म हो जाता है फिर दिक्कत होती है। आजकल बच्चों को जल्दी उठने की भी आदत नही रही। कई बार एक घन्टे मे काम खत्म नही होता तो मुश्किल। सुबह वो मुझे यही बात बता रही थी और नहाने के लिये बाल्टी भरने को लगा दी। तभी पानी खत्म हो गया।
:माँ पानी नही आ रहा।'
" चला गया?अब 12 बजे आयेगा।"
" तो क्या टंकी भी खाली है?"
हो गयी होगी। हमारी ऊपरवाली किरायेदार देर से उठती है तो सारा काम टंकी से ही चलता है इस लिये खत्म हो गया होगा।"
" तो आप उनसे कहती क्यों नही?"
" कई बार कहा है।"
" आप नीचे से उनका पानी बन्द कर दिया करो?"
" कैसे करूँ तुम्हारी बातें सुन कर सोचती हूँ वो भी मुझे उसी तरह कोसेगी जैसे तुम अपनी मकानमालकिन को कोसती हो।"
अब शुची मेरी तरफ देख कर कुछ सोचने लगी थी। यही बात तो मै उसे समझाना चाहती थी थोडा खुद को बदले। बार बार कहाँ घर बदलती रहेगी और ऐसे ही परेशान रहेगी। हो सकता है मकान मालकिन अपनी जगह सही हो।
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निर्मला कपिला की लघुकथाएं (लघुकथा प्रतियोगिता 2011)
Posted by Himdhara
Posted on बुधवार, अप्रैल 20, 2011
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bahut hi umada laghukathaye hai. achi laghukathayo ke liye badhai swikare - sanjay janagal
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