(''जयदेव विद्रोही'')
एक विद्रोही प्यारा सा भाग-11
(स्वतंत्र लेखक,पत्रकार)
रिपोर्ट"दीपकशर्मा कुल्लुवी"जर्नलिस्ट
जर्नलिस्ट टुडे नेटवर्क
"विद्रोही" जी नें अपनी बहुचर्चित किताब "हिमाचल का मिर्ज़ा ग़ालिब लाल चाँद प्रार्थी चाँद कुल्लुवी" में प्रकाशित रचना "शिकवा "में बहुत सुन्दर लिखा है I
जिस चाँद की यहाँ ज़रुरत थी उसे नाहक हमसे छीन लिया
ओ ऊपर वाले कभी कभी इंसाफ तुम्हारा खलता है
माना यह नज़ाम तुम्हारा है ,संसार भी ऐसे चलता है
इंसानियत के छड़ीबरदारों पर क्यों बज्र तुम्हारा गिरता है
कालिदास को भूल चले जिवरान की बातें करते हैं
इस वादी के शाहकारों का अब राम ही राखा लगता है



हर आदमीं के मन ह्रदय में एक विद्रोह जरूर होना चाहिए वर्ना वह कुछ भी नहीं कर सकता I और वह हर बुरे काम में भी बुरे लोगों का साथ देता जाएगा I उसमें कुछ खास करनें का जनून होना चाहिए I समाज में फैली बुराइयों को केवल एक विद्रोही ही मिटा सकता है I मेरी नज़र में एक विद्रोही की परिभाषा यही है और मेरी नज़र में जयदेव "विद्रोही " जी भी एक ऐसे ही "विद्रोही हैं जिन्होनें परिस्थितियों से भली भांति जूझना सीखा है,लड़ना सीखा है,और हर समस्या का समाधान निकालना सीखा है I
दुनियां से नहीं डरते जो वह "विद्रोही" कहलाते हैं
याद करती है दुनियां उनको बरसों पूजे जाते हैं
"विद्रोही"
विद्रोही विद्रोह न करे तो विद्रोही कहलायेगा
दिल में उठते तूफानों को
कहाँ तक कोई दवायेगा
विद्रोही कभी डरते नहीं
रुकते नहीं कभी झुकते नहीं
थक जायेंगे "विद्रोही" तो
विद्रोह असफल हो जायेगा
"विद्रोही" जी विद्रोही हैं
कोई उनको झुका न पायेगा
दीपक "कुल्लुवी"उनकी कलम से
एक इतिहास रचाएगा
एक इतिहास---------
शेष अगले अंक-12 में
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