
ग़ज़ल
(जशन-ए-ग़म)
हम फकीरों को मुहब्बत के सिबा कुछ आता नहीं
हम बहलाते हैं दुनियाँ को कोई हमें बहलाता नहीं
अश्क तो पागल हैं कुछ सोच के निकल आते हैं
और कुछ ऐसा भी नहीं की कोई याद हमें आता नहीं
हम वफ़ा करते रहे और जख्म दिल पे खाते रहे
कोई लाख चाहे यादें फिर भी भुला पाता नहीं
कौन 'दीपक'कैसा ' कुल्लुवी' सब खो जाएँगे
पैगाम अपनी मौत का कोई खुद को सुना पाता नहीं
कोई शिकवा नहीं अपनों से न गिला तुझ से
हम बुलाते हैं खुदा तुझको पर तू आता नहीं
बंदिशें मेरी नहीं तेरी ही होंगी शायद
वर्ना तू भी रोता साथ मेरे,मुस्कुराता नहीं
हम चले जाएँगे दुनियाँ से मुस्कुराते हुए
कोई मुझसा जशन-ए-ग़म मना पाता नहीं
दीपक शर्मा कुल्लुवी
09136211486
अश्क तो पागल हैं कुछ सोच के निकल आते हैं
जवाब देंहटाएंऔर कुछ ऐसा भी नहीं की कोई याद हमें आता नहीं
ग़ज़ल ही के रंग में डूबा हुआ
बहुत प्यारा और असरदार शेर ... वाह !
आपको पढ़ लेना ,
मानो अपने ही मन को सुकून दे देना
मुबारकबाद कुबूल फरमाएं .
"daanish" bhaarti