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Posted by दीपक कुल्लुवी की कलम से
Posted on बुधवार, मार्च 30, 2011
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छुपे रुस्तम "कबीरा"
सिटिजन जर्नलिस्ट टुडे नैटवर्क
यह है पचास बरस के " कबीरा "जी गोविन्दपुरी मैट्रो स्टेशन के नजदीक कालकाजी में एक निजी कंटीन में मात्र तीन हज़ार रुपये कमानें वाले पाँच बच्चों के पिता, ईमानदारी से काम करनें वाले मेहनती व्यक्ति दरअसल यह एक ऐसा नायाब हीरा है जिसे तराशने की ज़रुरत है इसके अन्दर इतनी प्रतिभा छिपी हुई है की यह किसी अच्छे लेखक को मात दे सकता है चलते चलते ,अपना काम करते करते यह कविताएँ बना लेते है और तरन्नुम में गाते रहते हैं I सभी इसकी प्रतिभा का लोहा मानते हैं I कई दोहे चौपाइयाँ,कविताएँ इन्हें कंठस्त हैं दोस्तों में यह बहुत लोकप्रिय हैI महंगाई की मार झेलते हुए भी इनकी कलम नहीं रूकती निरंतर चलती रहती है भजन भी अनेकों लिखे हैं ,मैं खुद एक लेखक हूँ इसीलिए इस हीरे की पहचान मुझे भली भांति है मैंने ऐसे छुपे हुए हीरों को निकालकर दुनियां के सामनें लानें का बीड़ा उठाया है I इस अद्भुत प्रतिभाशाली कवी ,लेखक " कबीरा" को हमारी हमारे नैटवर्क की तरफ से ढेर सारी शुभकामनाएं इनकी कलम दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति करे I हिंदी भोजपुरी में लिखते हैं यह I
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