दोस्तों ,इन दिनों मेरे शहर में बहुत सर्दी है , जाते जाते ये सर्दी अपना रंग इस तरह दिखायेगी ये सोचा नहीं था ऐसा लग रहा हैकि,जैसे हम किसी " अपने "को विदा करने गए हों और वो हमसे विदा लेने से पहले आखरी बार बड़ी ही आत्मीयता के साथ हमसे गले मिलने लगे ठीक इसी तरह ये सर्दी भी जाते जाते गले पड़ गयी है और कुछ ज्यादा ही आत्मीय हो चली है की हमें अलमारियों ,संदूकों में से स्वेटर शाल दुशाले खंगालने पड़ रहेहैं खैर
दोस्तों ये तो बात शुरू करने का महज बहाना था मनवा में तो हमेशा रिश्तों की बात होती है तो आज बात रिश्तों की उष्मा और गर्माहट की --दोस्तों में अक्सर सोचती हूँ की हमारे रिशते भी तो स्वेटर ,शाल और लिहाफों की तरह हैं जो हमें जिन्दगी की सर्द रातों में अनुभूति के स्पर्श से उष्मा , आंच देते रहते हैं इन स्वेटर रूपी रिश्तों में गर्माहट होती है आंच होती है जो हमें बर्फ होने से जड़ होने से बचाती है जिन्दगी की सर्द और दर्द भरी रातों में जब हम तन्हा होते हैं तो हम दिलकी अलमारियों में से ,मन के संदूकों में से और यादों के गलियारों में से रिश्ते खोजने लगते हैं ,तलाशने लगते है ढूंडने लगते हैं -की कहीं कोई रिश्ता मिल जाये जो हमें फिर से जीवित कर दे
दोस्तों ये रिशते भी क्या चीज है जब जिन्दगी दर्द की धूप से झुलसने लगती है तो ये ठंडी फुहार बन जाते है और जब जिन्दगी सर्द हो जाती है जब बर्फ हो जाती है तो ये अपने कोमल स्पर्श से उसे पिघला देते हैं दोनों ही सूरतों में ये हमें जीवित रखते हैं
तो चलिए मेरे साथ ,इस सर्दी में किसी भावना शून्य हिमालय की बर्फ पिघलायी जाए ,किसी कोने में से कोई रिश्ता उठाया जाये और उसकी आंच से कड़वाहट की द्वेष की बर्फ को हटाया जाये मेरी मानिये यक़ीनन ये रिशते सर्द रातों में आपको आंच देगे किसी ने क्या खूब कहा है "" आँच देगें ये सर्द रातों में दुशालों की तरह , मत तोडिये रिश्तों को कांच के प्यालों की तरह " तो दोस्तों स्नेह ,ममत्व ,सुरक्षा आत्मीयता , समीपता ,प्रेम के रिश्तों की आंच के आगे ये सर्दी क्या कर लेगी ? है ना
बहुत ख़ूबसूरत तुलना...
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