मेरे शे-रों में कुछ न कुछ तो ज़रूर रहा होगा
वर्ना अश्क आपके,इस कदर न छलकते
अंधेरों में ही सही,चिराग जलाने चले आते हो
वर्ना मेरी मजार के आसपास,इस कदर बेबस न भटकते
मायूस होकर ना देखते,बंद फाइलों में तस्वीरें मेरी
मेरी यादों के लिए,इस कदर ना तरसते
यह तो 'दीपक कुल्लुवी' का वादा था याद रखेंगे
आप तो बेवफा थे,इस कदर बेवजह ना बदलते
दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
०९१३६२११४८६
१५/०९/२०१०.
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कुछ ना कुछ
Posted by दीपक कुल्लुवी की कलम से
Posted on गुरुवार, सितंबर 16, 2010
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1 comments:
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