परशुराम नें वैदिक युग में बसाया था आज का हिमाचल का सबसे बड़ा यह गाँव
सहस्रों ऋषि मुनियों नें हिमालय के पहाड़ों की कंद्राओं में तपस्या की थी. इस बात के सपष्ट परमाण आज भी वैदिक ग्रंथों, पौराणिक सन्दर्भों में मिलते हैं. किसी भी युग की बात करें तो हिमालय के हिमाचल में कई परमाण हैं . उन्ही में से एक है कुल्लू जिला का सतलुज और कुर्पन की वादियों में एक गाँव निरमंड जहाँ न केवल इतिहास की इबारत के अबशेष हैं बल्कि बल इस गाँव को प्रदेश का सबसे बड़ा गाँव होने का रुतबा भी हासिल है. कभी यह गाँव में प्रकांड विदवआनों से भरा होता था तब इस गाँव को छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता था. आओ आज मेरे संग पहाड़ के उसी गाँव चलें

.सुदर नज़ारे इठलाती बलखाती सतलुज के एक छोर से गुजरती घटी निसंदेह प्रकृति के हाथों सृजित एक सुंदर घटी नाम है कुर्पन . इसी घटी में शांत वादियों में इतिहास की गबाही देता एक गाँव अपनी कहानी खुद ही कहता है . गाँव सुंदर है और यहाँ बहुत कुछ है . एक पौराणिक कथानुसार ऋषि जम्दागिनी के पुत्र परशुराम ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए जब अपनी माँ का धड शारीर से अलग किया था तो बह यहीं गिरा था इसी लिए यह निरमंड कहलाया. कालांतर में परशुराम ने सप्सिंधू प्रदेश के खात्मे के बाद इसी स्थान पर तपस्या की थी. उस काल में वे अपने साथ पांच सौ वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण और ६० हस्तशिल्पी भी लाये थे जो यहाँ बसाये गए. यहाँ उन्ही के काल में एक मंदिर भी बना था जहाँ से परशराम ने पहली बार नर मेध यग्य संपन्न करवाया था. यह मंदिर आज भी यहाँ मौजूद है.मंदिर में परशुराम द्वारा उपयोग की गई कई बस्तुएं राखी गयी हैं जो १२ साल बाद होने बाले भूंडा उत्सव के दौरान ही बहार निकली जाती है. निरमंड में माता अम्बिका के अलाबा और भी कई मंदिर एवं इतिहास के गबाह अबशेष आज भी मिलते हैं. परशुराम मंदिर के समक्ष एक गोले चबूतरा बना हुआ है . गाँव की रसम के अनुसार शादी शुदा महिलाओं को मंदिर के मुख्य दुवार से सीधे आगे बढ़ने की मनाही है लिहाजा उन्हे चबूतरे से घूम कर जाना पड़ता है पुरातव. धरम , संस्कृति, इतिहास,कला, यहाँ हर पहलू मौजूद है . निरमंड के प्रमुख मंदिरों में से अठारह दशनामी , जूना अखारा,दक्षिणी महादेव ,लक्ष्मी नारायण, पुदरी नाग जैसे दर्ज़नों मंदिर एवं ऐतिहासिक परमं आज भी यहाँ देखे जा सकते है. सादगी पसंद लोगो के इस गाँव की अपनी अलग ही पहचान है . यहाँ की महिलाएं धातु और रेइज्ता पहनती हैं. यहाँ ब्राह्मणों की तादाद ज्यादा है .ब्राहमण परिवार से तालुक रखने बाली महिलाएं संत्री लाल धाथुओं से पहचानी जा सकती हैं .निरमंड क्षेत्र खूबसूरत वादियों का देस है. जहाँ के नज़रे अभिभूत करते हैं . निरमंड के पास ही देऊ ढँक और बासमती की महक के लिए विख्यात कोयल और बाइल गाँव का नज़ारा निरमंड पर समूची कुर्पन घाटी का नज़ारा नयोछाबर करता प्रतीत होता है . निरमंड में मनाये जाने बाले मेलों में से महाभारत कालीन एक प्रसंग की याद दिलाती बूढी दिवाली प्रदेश भर में मशहूर है. निरमंड की खूबसूरत अनादी भले ही अभी गुमनाम हो लेकिन इस बड़ी का निरमंड की नहीं बल्कि यहाँ से २५ किमी दूर सरौहन का नज़ारा किसी जन्नत से कम नहीं है . पहरों के अंचल में यह स्थल गज़ब का है जो यहाँ पहुँचता है अनायास ही कह उठता है की वाह ! काया बात है .निरमंड पहुंचना कोई मुश्किल भी नहीं है. सैर चाहे कुल्लू मनाली की हो या फिर शिमला की , सफ़र किन्नौर की घाटियों का हो या फिर रामपुर या भीमकाली सराहन की निरमंड जरूर घुमियेगा . यादें सजोने के लिए यह स्थल अच्छा है. यहाँ शिमला कुफरी, नारकंडा हो कर या फिर जलोडी हो कर और बश्लेओ हो पडाब दर पडाब खूबसूरत मनमोहक नज़रों के सुन्दर द्रिश्य्बलियाँ ही देखने को मिलेगी . त्रेच्किंग और साहसिक गतिविधियों के लिए भी निरमंड का सानी नहीं. बस में घूमें अपनी गाड़ी से घूमें निरमंड रामपुर से मात्र १७ कीलोमीटर है ठहरने गेस्ट हाउस सरकारी रेस्ट हाउस भी हैं . निरमंड किसी भी मौसम में घूमा जा सकता है. निरमंड को हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा गाँव होने का भी गौरव प्राप्त है. मन की शांति के लिए निरमंड जयादा बेहतर जगह है.
भगवान परशुराम की यह धरती वाकई बहुत सुन्दर है. कुछ वर्ष पूर्व दिसम्बर में मैं और रत्न चंद निर्झर यहाँ की बूढी दिवाली देखने गए थे.दौलत भारती का यह लेख अच्छी जानकारी देता है.
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