श्रीमान ई पिछले कई वर्षों से साहित्य की दुनिया में संघर्षशील थे, पर आज तक उन्हें कोई प्रसिद्धि नहीं मिल पाई । उन्होंने अपने सारे सम्पर्कों का लाभ उठाया, फ़िर भी शोहरत नहीं मिली । एक दिन उनकी मुलाकात प्रसिद्ध आलोचक च्यांग से हुई। उन्होंने च्यांग महोदय को अपने घर भोजन पर आमंत्रित किया। श्रीमान ई की मेहमानवाजी से प्रसन्न होकर च्यांग ने कहा, ‘आपकी बेकद्री अच्छी बात नहीं है। मैं आपके बारे में एक प्रशंसात्मक लेख लिखूंगा और उसे किसी प्रसिद्द समाचार- पत्र या पत्रिका में प्रकाशित करवाऊँगा । आपकी रचनाओं की तुलना...।’
आलोचक च्यांग की बात पूरी होने के पूर्व ही श्रीमान ई बोल उठे, ‘कृपया आप मेरी रचनाओं की प्रशंसा न करें। मैं विनती करता हूं कि आप मेरी रचनाओं की आलोचना करें। अपने पिछले दस वर्षों की जानकारी के आधार पर मैं कह सकता हूं कि आपने जिन कृतियों की आलोचना की है, वे देश-विदेश में प्रसिद्ध हुई हैं। इससे आपका मान भी बढ़ेगा और पैसे भी मिलेंगे। इसे ही परस्पर सहयोग कहते हैं।
गिरिराज ९-१५ जून २०१० में प्रकाशित
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चीनी लघु कथा- परस्पर सहयोग
Posted by रतन चंद 'रत्नेश'
Posted on शुक्रवार, जून 11, 2010
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2 comments:
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सुंदर पोस्ट
जवाब देंहटाएंआईये पढें ... अमृत वाणी।
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