तुम्हारी खुशी के लिए
नही दे सका हँसी के दो फोल
तो मुझे कोई हक़ नही की
इन मृग सी आंखों में
मोती आंसुओं से
कर दूँ वरिश के लिए विवश
न बना सका
चांदनी रात का सफर
तो मुझे कोई हक़ नही की
grmi की duf में
तुम्हे nange paer से
pgdndiyon पर चलने को krn vivsh
मुझे कोई हक़ नही
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कोई हक नही
Posted by बेनामी
Posted on रविवार, अगस्त 23, 2009
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